१) गर्भाधान संस्कार सुयोग्य संतान प्राप्ती हेतु पुरस्कृत विधान को ही गर्भाधान संस्कार कहते है।
२) पुंसवन संस्कार म नरक से तारण करने हेतु गर्भ के ३ रे या ४ थे माह में केवल पुत्र संतती प्राप्ती हेतु की गओ वैधानिक प्रक्रिया को पुंसवन संस्कार कहते है । सीमन्तोन्नयन संस्कार
a) गर्भ शुद्धी हेतु, गर्भ के ६ ठे या आठवें मास से प्रसव पर्वत- गर्भिणी को घृतयुक्त सुपाच्च पौष्टिक आहार खिलाने हेतु कृत विधान ही सीमन्तोन्नयन संस्कार है ।
४) जातकर्म संस्कार नालच्छेदन पूर्व बालक को स्वर्ण शलाका से अथवा अनामिका अंगली (शहद) मधु एवं घृत (घी) खाने की विधिव प्रक्रिया का जात कर्म संस्कार कहते हैं ।
५) नामकरण संस्कार बालक के आयु-तेज एवं लोकाचार सिद्धी हेतु बाल के जन से ११ वे, १०० वे या कुल प्रधानुसार नामकरण विधान प्रक्रिय को ही नामकरण संस्कार कहते हैं।
६) निष्क्रमण संस्कार बालक के सुपथ जीवन क्रमण एवं आयु वृद्धी हेतु पिता द्वा (४थे या ६ ठे मास में पंच महाभूतों के प्रति प्रेषित प्रार्थना सूर्यचंद्र की पूजा एवं दर्शन विधी को निष्क्रमण संस्कार क.. जाता है।
७) अन्नप्राशन संस्कार बालक को उम्र के ६ ठे या सातवे माह में शुभमुहूर्त में दे देवताओं के पुजन सहित खाद्य पदार्थ निवेदित कर सोने चांदी के चम्मच से हविष्यान्न (खीर आदि) पुष्टीकारक चटाने की विधि-विधान को ही अन्नप्राशन संस्कार कहते है ।
८) चुडाकरण संस्कार (झडुला) बालक की आयु के ३ रे, ५ वे या ७ वे वर्ष, अथवा कुलाचार कुल परंपरानुसार यह संस्कार किया जाता है। इसे एक महत्वपूर्ण संस्कार के रूप में सम्पन्न किया जाता है । मुलतः बालक के दीर्घायु, अन्नप्राशन सामर्थ्य, उत्पादन शक्ति प्राप्ती, ऐश्वर्य वृद्धी संतान, बल तथा पराक्रम प्राप्ती योग्य होवे इस प्रार्थना सह शिर्ष मर्मस्थान पर शिखा रखते हुने चुडाकरण करने की विधी कोही चूडाकरण (मुंडन) संस्कार कहते है जिसे हम झडुला भी कहते है ।
९) कर्णवेध संस्कार बालक को पूर्ण पुरुषत्व वा स्त्रीत्व प्राप्ती हेतु सुवर्ण शलाका द्वारा कर्ण छेदन विधी ही कर्ण वेध संस्कार के नाम से जानी जाती है । बालिका के बाये नासिका वेध का विधान भी है । यह संस्कार भी शुभमुहूर्त पर ३ रे, ५ वे अथवा कुल परंपरानुसार देवी-देवता पूजन एवं शुभमंत्रोच्चार में किया जाना चाहिए । १०) उपनयन संस्कार
एक महत्वपूर्ण संस्कार इसे शास्त्रों पुराणों ने द्वितीय जन्म कहा है । बालक के उम्र के आठवे वर्ष में विधि वत मंगल मुहूर्त में आप्त तथा गुरुजनों की उपस्थिती में मुंडनादि कर स्नानादिसे पवित्र हो विधीवत मंत्रोच्चार सहित यज्ञोपवित धारणकर गुरुपदेशन सहित, गायत्री मंत्र जप का तथा वेद-विद्याध्यन का अधिकारी हो जाता है । साथ ही श्रोत- स्मार्त आदि कर्म करने का अधिकारी भी हो जाता है ।
११) वेदारंभ संस्कार उपनयन संस्कार के पश्चात वेदाध्यन का अधिकार प्राप्त हो जाता -है । और बालक गणेश एवं सरस्वती की पूजा विधी विधान से कर वेदाध्यन प्रारंभ करता है । इसे ब्रहम्चर्याश्रम संस्कार भी कहते है ।