भारत के राजनैतिक पृष्ठभूमि का एक अद्वितीय, अविस्मरणीय नाम, भरत खंड में प्रथम साम्राज्य निर्मिती के प्रेरक संस्थापक अर्थशास्त्र तथा नितीशास्त्र के विद्वत प्रणेता, रचियेता। सारे विश्वभर में अर्थवेना कौटिल्य के नाम से पहचाना जानेवाला व्यक्तिमत्व है, मगध विप्र श्रेष्ठ पं. विष्णुदत्त शर्मा अर्थात आर्य चाणक्य । आर्य चाणक्य के नाम से सर्वश्रुत होनेवाले इस विप्र श्रेष्ठ का जन्म मगध के कुलिन ब्राह्मण कुटुंब में हुआ । आपका कौटुंबिक तथा गुरुकुल में प्रचलित नाम विष्णुदत्त शर्मा था। आपने अपने प्रारंभिक विद्यार्जन के पश्चात वेद पुराण शास्त्रों ग्रंथो में ज्ञानार्जन हेतु तक्षशिल विश्वविद्यालय पहुंचे, सारा अध्यन समाप्त कर आप पुनश्च पाटलीपुत्र नगर में स्थायिक हुआ ।
उस समय मगध जनपद स्थित पाटलीपुत्र राजधनी के नरेश महापद्मनंद थे। नंदराज दिलासी एवं दंभी राजा था। एक बार राजगृह में ब्राह्मण भोजन हेतु विशिष्ट निमंत्रितों में पं. विष्णुदत्त शर्मा भी निमंत्रित थे। आपका वर्ण कुछ काला था तथा चेहरा भी उतना रुपवान नही था। मुंडित सिरपर शिर्षबद्ध शिखा जनेऊ सह धोती तथा अंगरखा परिधान युक्त गलमाल एवं दंड धारक विप्र आर्य चाणक्य के आगमन पर नंदराज ने उनका परंपरागत अतिथ्य सत्कार न कर उन्हें प्रताडित किया अपमानित किया। इस पर विप्र श्रेष्ठ चाणक्य आग बबूला हो गये और क्रोधावेश में आपने अपने बद्धशिखा को खोलकर प्रतिज्ञा की ‘मै विष्णुदत्त शर्मा उपाख्य चाणक्य यह प्रतिज्ञा करता हूँ की जब तक मैं इस नंदराज सह समुल नंदवंश का नश नहीं कर देता तब तक इस खुली शिखा को शिर्षबद्ध नहीं करूंगा’ और इस ब्राह्मण श्रेष्ठ ने अपनी प्रतिज्ञा पूर्ण करने हेतु महापद्म नंदराज की रक्षिताया भार्या मुरा पुत्र चन्द्रगुप्त को अपने निर्मित आश्रम में सर्व विद्या संपन्न कर प्रविण किया तथा उसी के सहयोग से नंदराज पर विष प्रयोग कर अन्य संबंधितों को अन्यान्य प्रकार से नष्ट कर नंद वंश का समूल नाश कर अपनी प्रतिज्ञा पूर्ण की। और राजहिंहासन पर मुरा पुत्र चंद्रगुप्त मौर्य को सिंहासनारूढ कर मोचं सामाज्य की नींव डाली । राज्य विस्तार हेतु संलग्न वं दूरस्थ राज्यों से मैत्री संबंध विवाह संबंध तथा बुद्ध आदि सर्व प्रकार से राज्य विस्तार कर अखंड सामाज की नींव डाली। इसे पूर्व भरत खंड में अनेक जनपद थे, स्वतंत्र राज्य थे। इन जनपदों की सारी शक्ती पडीसी राज्यों से लड़ने तथा सुरक्षामें ही नष्ट होती थी। आर्य चाणक्य के इस प्रयोग ने इसमें निश्चतता दी, विशालतादी, आर्थिक उन्नती के अनेक द्वार खोले प्रजा के खुशहाली और विकास के नये आयाम दिए नयी दिशाएँ प्रदान की । इस साम्राज्य के सर्वेसर्वा प्रधानमंत्रीपद पर आप कार्यरत रहते हुने सारा सुत्र संचलन किया। चाणक्य निती तथा जगप्रसिद्ध कौटिल्य का अर्थ शास्त्र आजभी राजनिती के लिये आपकी बड़ी उपलब्धीयां है।
आर्य चाणक्य ने अपनी प्रेषित नितीयों को आत्मसात भी किया। विपुल आर्थिक सुलभता राजकिय कोष एवं अन्य व्यवस्थता की उपलब्धता के अनंतर नैतिक कतव्य निष्ठता अंतर्गत आप कुरल्य कृषक भूमि में पर्णकुटी बनवाकर सादगी पूर्ण जीवन यापन सह कर्तव्य पालन करते रहे । आप कुटीया में भी व्यवस्था के होते हुआ भी राजकिय कार्य हेतु राजकिय दिपक का उपयोग करते थे तथा निजी कार्यों हेतु व्यक्तिगत समाज दिपक उपयोग मे लेते थे । यह था स्वयं अनुशासन, स्व कर्तत्वपालन का सोज्वल प्रतिक । अर्थात साम्राज्य का प्रधानमंत्री, निर्बंध होते हुओ भी राजहित हेतु बन्धन युक्त रहते थे।
नंदराजा के विश्वासपात्र, मुद्राराक्षस सह अनेक राजकर्मियों को राजसतत कार्य हेतु आपने उनको
स्थित राज के प्रति आस्था को परिलक्षित कर उन्हे समाविष्ट किया। यह भी निती का ही एक भाग था ।
आपकी कार्यशैली आपका बुद्धी कौशल्य, आपकी निती निपुणता, आपका आर्थिक सोच (कौटील्य का अर्थशास्त्र), आपकी कर्तव्य परायणता, आपकी प्रतिज्ञा पालन ये सारे अंग आपके विस्तृत विलोभ निय, चरित्र पुस्तीका के अविस्मरणीय खुले पृष्ठ है। स्मरणिका २००५ सभा और समाज के माध्यम से ऐसे अविस्मरणीय – मगध द्विज श्रेष्ठ मग आदर्श पुरुष श्रेष्ठ कौटिल्य आर्य चाणक्य को मनस्वी आदरांजली अर्पित करती है ।