सौर धर्म के अनुसार सृष्टि: सूक्ष्म निराकार, निरवयव, अव्यक्त और इन्द्रियों के लिए अगोचर ऐसे एक मूल तत्व से प्रकृति का निर्माण हुआ है । इतनी विशेषताएं होने के उपरांत भी अकेली प्रकृति अपना व्यवहार चलाने के लिए समर्थ नहीं हैं। सृष्टि संचालन हेतु इस प्रकृति को भी संयोग शक्ति की आवश्यकता होती है । […]
दीपार्णव ग्रंथ में सूर्य के तेरह नाम और स्वरुप कहे गये है और वे सभी दो दो हाथों के कहे गये है, तथा आयुधों में शंख, कमल, चक्र, गदा, वज्रदण्ड, पद्मदंड आदि में से कोई दो आयुध देने का विधान है । विक्रमादित्य के नवरत्नों में से एक, ज्योतिष्यादि विद्याओं प्रकाण्ड विद्वान शाकद्वीपीय ब्राह्मण मग […]
ज्ञातव्य है कि हमारी संस्कृति श्रवण संस्कृति रही है । जो बात ब्रह्माजी ने श्री सुतजी से कही वही बात श्री सुतजीने सनकादिक ऋषियों से कही। या श्री व्यासजी ने शौनक ऋषी से कही. अर्थात गुरु शिष्य परंपराने ब्रह्मांड ज्ञान को विविध कथाओं के आधार पर सर्वश्रुत करने का अमोल प्रयास किया है । यही […]
हिन्दकुश पर्वत श्रृंखलाओ से सुशोभितवह भूभाग जहां सूर्य की किरणे सिधी और सरल गिरती है, जहां के धूली कण सहित सूर्यकिरणों की तरंगो में सारा भूभाग स्वर्णिम दिखाई देता है । जहां की विभिन्न वृक्षों से प्रवाहीत, सप्तगिरीयों से टकराती हुआ सौरभ युक्त पवन सारे वातावरण को सुगंधित कर देती है। जहां की नदियां और […]