इसी सप्तमी तिथि को भगवान सूर्यनारायण स्थास्ड होकर अपनी या प्रारंभ करते है। इसी सरमी को किमद्वारा तराशने के सुरवरूप प्राप्त हुआ था। प्रभु नारायण को इसी दिन पत्नी संज्ञा की प्राणी हुआ थी और इसी ममी के दिन प्रभु पूजा अर्धा के लिए वेद वेदांगों में पारंगत अध्यगधारी शिखाधारी मुदितसिर के शंखनाद करते हुआ […]
भुवन भास्कर भगवान सूर्यनारायण को सप्तमी तिथी अतिव प्रिय है। यूं तो सूर्यउपासकों के लिये प्रतिमास के शुक्लपक्ष की सप्तमी तिथि परम पुनीत, पर्व का दिन है। परंतु माघ शुक्ल सप्तमी का अपना ही महत्व है । सौरजनों का यह पूण्यप्रद उत्सव है, महापर्व है। जो रथसप्तमी, अचला सप्तमी, विजयासप्तमी आदि नामों से जानी जाती […]
पांचो देवो में आप अपने इष्ट देव को केन्द्र अर्थात मध्य में विराजमान कर अन्यचारों देवताओं को चार कोणों में अर्थात अमेय, नैऋत्य, वायव्य तथा ईशान्य दिशा में स्थापित कर विधियुक्त पुजन कर सकते है । सौर संप्रदायी अपने इष्ट प्रभु सूर्यनारायण की मूर्ति या प्रतिमा केन्द्र में रख कर – अग्नेय दिशा में श्री […]
१) गर्भाधान संस्कार सुयोग्य संतान प्राप्ती हेतु पुरस्कृत विधान को ही गर्भाधान संस्कार कहते है। २) पुंसवन संस्कार म नरक से तारण करने हेतु गर्भ के ३ रे या ४ थे माह में केवल पुत्र संतती प्राप्ती हेतु की गओ वैधानिक प्रक्रिया को पुंसवन संस्कार कहते है । सीमन्तोन्नयन संस्कार a) गर्भ शुद्धी हेतु, गर्भ […]