भगवान सूर्य को अर्घ्य प्रदान करना॥

भक्त वस्तल भगवान भास्कर सूर्यनारायण केवल नमस्कार एवं अर्घ्यप्रदान करनेमात्र से ही भक्तो पर प्रसन्न हो जाते है। इतना ही नही वे मनस्वी मनन नाम स्मरण मात्र से ही भक्तों को आशिर्वाद प्रदान करते है । याज्ञवल्क्य मुनि ने ब्रह्माजी के साथ हुअ वार्तालाप में कहा कि इस असार घोरे संसार में निमग्न प्राणियों द्वारा एकबार भी किया गया सूर्य नमस्कार मुक्तिमार्ग प्रशस्त करदेता है ।

दुर्ग संसार कान्तारमभिधावताम् । एक सूर्यनमस्कारो मुक्ति मार्गस्य देशकः ।। साथ ही सौर ग्रंथों में यह भी विधान/वर्णन मिलता है कि सूर्यमंदिर में मनोभाव से मार्जिन लेपन तथा दीपदान करने से निश्चय ही भगवत् प्राप्ति होती है। सूर्यनमस्कार प्रभु सूर्यनारायण के प्रति समर्पित साष्टांग प्रणाम है। शारिरिक एवं आरोग्य की दृष्टी से यह सम्पूर्ण व्यायाम है। एक सम्पूर्ण योग है, प्राणायाम है ।

भगवान सूर्य को अर्घ्य अतिव प्रिय है। इसलिए सौरजनों को चाहिए कि वे प्रतिदिन सूर्योदय पूर्व उठकर शौचादि से निवृत्त हो स्नानोपरांत स्वच्छ वस्त्रपरिधान कर ताम्रपात्र (कुंभ) में शुद्धजल सह अक्षद गंध रक्त पुष्प, रक्तचंदन, भरकर पूर्वाभिमुख हो भगवान सूर्यनारायण को अर्घ्यप्रदान कर स्वागत करे, ऐसा वेद उपदिषद तथा पुराणों एवं ग्रंथों में विधान है। ऐसे ही मध्यान्ह तथा सायं संध्या में भी अर्घ्यप्रदान करने का विधान है। अर्घ्य देते समय निम्नांकित मंत्र का उच्चारण करे ।

एहि सूर्य सहस्रांशो तेजोराशे जगत्पते । अनुकम्पय मां भक्त्या गृहणार्घ्य दिवाकरं । साथ ही गायत्री मंत्र का त्रिवार जाप करे। (गायत्री मंत्र ही सविता अर्थात सूर्यमंत्र है)

भूर्भुवः स्वः तत्स् वितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो योनः प्रचोदयात् ॥ यात सूर्य के १२ नामों का नामस्मरण कर नमन करना चाहिए। जैसे-

ॐ आदित्याय विद्मये सहस्रकिरणाय धीमही तनोः सूर्य प्रचोदयात ।

अर्घ्य देने के पश्चात भगवत् प्रार्थना कर परिक्रमा करे । जपा कुसुम संकाशं काश्यपेयं महाद्युतिम् । तमोऽरि सर्व पापघ्नं सूर्यगावाह्यम्यहम् ॥ सौर विधानानुसार मग ब्राह्मणों को त्रिसंध्या करने को कहा गया है। प्रातः कालीन संध्या के लिए स्नानादि से निवृत्त हो अर्घ्य प्रदान करना चाहिये सायं संध्या में सूर्यास्त होने से कुछ पूर्व हाथमुंह धोकर भी जल प्रदान कर अर्घ्य दिया जा सकता है। आज की इस कामकाजी दूनिया में ३ या २ बार भी संभव न हो सके तो कम से कम प्रातः काल में सूर्य अर्घ्य प्रदान करना अपना कर्तव्य समझना चाहिए । तथा शेष दो संध्याओं में भगवान को स्थल नमस्कार कर कर्तव्य पुर्तता दर्शानी चाहिए। सौर ग्रंथो में तो यहां तक वर्णन मिलता है कि यदि सौरभक्त कोई विधी नही जानता, मंत्र ज्ञान से अनभिज्ञ है, शरिर से अस्वस्थ है, परंतु फिर भी यदि वह सच्चे मन से भगवान आशुतोष सूर्यनारायण को मनस्वी अर्घ्य, ध्यान प्रार्थना स्तुति करने पर भगवान भुवनभास्कर, प्रसन्न होते है। कृपा दर्शाते है ।

नित रोज पूजापाठ ध्यान आदि संभव न होने पर रविवार अर्थात सूर्यवार तथा प्रभु प्रिय शुक्लपक्ष की सप्तमी तिथी को विधिविधान सहित सूर्यनमस्कार, अर्ध्य सूर्यस्तवन सूर्यकथा पूजा पाठ सह विशेष रूप से आदित्य हृदय स्तोत्र का पठन मनोभाव से करना चाहिए तथा रविवार को सूर्यास्तपूर्व अ-लवण भोजन कर उपवास रखना चाहिए, केवल फलाहार करने से प्रभु अतिव प्रसन्न होते है। इसी तरह सप्तमी व्रत के लिए पंचमी उपवास षष्ठी नक्तवृत तथा सप्तमी को पारना करना चाहिए।

सूर्य अपूर्व की सर्वसाधारण रूप से (विशेषकर महिला प्रवर्ग में प्रचलित विधी की जानकारी भी हो इस हेतु हमारी ज्येष्ठ बहन सी. तारामणी हरेकृष्णजी शर्मा-मालेगांव (नाशिक) द्वारा दी गयी जानकारी का भाग प्रातः उठने के पश्चात नित्यक्रियाओंसे निवृत्त हो पात्र में शुद्ध जल भर कर सूर्याभिमुख होकर सातबार सूरज भगवान सावित्री । गंगा गीता गायत्री ॥

मंत्र उच्चारण कर अर्घ्य प्रदान करे । पश्चात भगवान सूर्यनारायण के १२ नाम स्मरण करे । नमन करे । और भगवान भुवन भास्कर से प्रार्थना करे कि हे सूर्यदेव हे कश्यपनंदन अर्घ्य स्विकार कर हम पर अनुकंपा किजिए और हमारी परिक्रमा तथा प्रार्थना स्विकार किजिए। सूर्यस्तुति एवं नमन ।

सूर्यस्तुति

सुबह सबेरे सिस निवाऊं सूरज जी की भक्ति पाऊं। सब देवन में सांचा देव, सकल दूनिया का करता सेव ॥ मोर मुकुट हिरा का साजे, सिर केसर का तिलक बिराजे । आवो राणी राणादे का भर्तार, किडी ने कण हाथी ने मण थे सबका दातार ।।

घर घर सीस निवावे नार, ब्राह्मण पोथी वेद पढे ।

गीता, प्रभुलिला जो दिनका गावे घर बेठ्या गंगाजी न्हावे ॥

प्रत्येक सनातन धर्मिय महिला विशेषकर युवतिओं को सूर्य अर्घ्य प्रदान करने के पश्चात तुलसी सिंच कर श्रद्धाभाव से पूजन परिक्रमा प्रणाम कर सुखी ग्रहस्थ जीवन की कामना करनी चाहिए। तुलसी पत्र प्राण वायु का स्त्रोत है। इसलिए कहते है कि जीस घर में तुलसी का संवर्धन होता है। वही आरोग्य धाम होता है। भगवान सूर्य के प्रातः कालीन सूर्य रश्मियों के समान ही तुलसी पत्र भी जीवन दायिनी है।

तुळसामाई तुळसामाई थाने सिंचबा पाणी लाई ।

सबने वर द्यों सुखी जीवन द्यों थाने नमन हे तुळसामाई ॥

यात भोजन तय्यार कर प्रभो को नितरोज भोग लगाकर गाय कुत्तो के लिये भी ग्राम निकालना चाहिए और भोजन अर्थात अन्नप्राशन को भी एक यज्ञ कर्म समझ कर प्राशन करना चाहिए।

संत शिरोमणी मोरारजी बापू कहते है कि जिस घर में भोजन और भजन एक साथ मिलकर करते है। वहां प्रभुः वास करते हैं। सायंकाल को दिया बाती कर प्रभु के सम्मुख (पूजास्थल में) दीप प्रज्वलन कर

शुभं करोती कल्याणम् आरोग्यं धन संपदा ।

शत्रु बुद्धी विनाशाय दीपक ज्योति नमस्तुते॥ का उच्चारण कर दीपक को नमस्कार करना चाहिये और निद्रा पूर्व सोने से पहले भगवान का नामस्मरण कर सोना चाहिये ।

त्वमेव माताय पिता त्वमेव त्वमेव बन्धुच सखा त्वमेव ।

त्वमेव विद्या द्रविणम् त्वमेव त्वमेव सर्वं मम देव देव ||

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