॥ शाकद्वीप ॥

हिन्दकुश पर्वत श्रृंखलाओ से सुशोभितवह भूभाग जहां सूर्य की किरणे सिधी और सरल गिरती है, जहां के धूली कण सहित सूर्यकिरणों की तरंगो में सारा भूभाग स्वर्णिम दिखाई देता है । जहां की विभिन्न वृक्षों से प्रवाहीत, सप्तगिरीयों से टकराती हुआ सौरभ युक्त पवन सारे वातावरण को सुगंधित कर देती है। जहां की नदियां और पर्वतो से देवराज इन्द्र जल-रूपी मेघों को लेजाकर शाकद्वीप सहीत सारे विश्व मे विपुल वर्षा करवाते है। जहां चारो ओर खुशहाली ही खुशहाली है यहां किसी को किसी से राग नही, द्वेश नही सारे लोग अपनी अपनी मर्यादाओं में रहते हुआ अपनी मुक्ती मार्ग का सृजन करते है कोई मर्यादाओं का अल्लंघन नही करता । कोई दंड नही, कोई भेद नहीं सारे जन आशुतोष भगवान सूर्यनारायण के मकार स्वरप का ध्यान जप करते रहते है। सभी धर्म-प्रेम धार्मिक भावनाओं से ओतप्रोत एवं ज्ञानी है, सिद्ध है । चारों ओर शांती ही शांती है, खुशहाली ही खुशहाली है। यही वेद पुराणो ग्रंथो में वर्णित दिव्य द्विप-शाकद्वीप है । हिरण गर्भ वर्ण युक्त, भूगोलार्ध का शिर्ष (मुख) भाग जो क्षिरसागर से परिवेष्ठीत है, जहां के मेरु पर्वत से भगवान सूर्य नारायण अपनी परिक्रमा प्रारंभ करते है वही दिव्य स्थान देवलोक, स्वर्गलोक के नाम से भी जाना जाता है, मगों का सृजन स्थान शाकद्वीप है ।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *