॥ रथ सप्तमी – महापर्व ॥

इसी सप्तमी तिथि को भगवान सूर्यनारायण स्थास्ड होकर अपनी या प्रारंभ करते है। इसी सरमी को किमद्वारा तराशने के सुरवरूप प्राप्त हुआ था। प्रभु नारायण को इसी दिन पत्नी संज्ञा की प्राणी हुआ थी और इसी ममी के दिन प्रभु पूजा अर्धा के लिए वेद वेदांगों में पारंगत अध्यगधारी शिखाधारी मुदितसिर के शंखनाद करते हुआ पितांबरधारीप्रभु प्रिय मग ब्राह्मणों की उत्पत्ती (अधिकार) माघ शुक्ल सप्रमी के पूर्व माघ शुक्ल रात्री में प्रभु सूर्यनारायण का पूजन महिमा या कथा तथा भजनादी विधिवत कर रात्रि में उनके सम्मुख शयन करेंसी के प्रातःकाल विधिपूर्वक पूजा करे ब्राह्मणों को भोजन कराये। इस प्रकार एक वर्ष तक सप्तमी को व्रत कर रथयात्रा करे । कृष्ण पक्ष में तृतीया तिथि को कभुक्त चतुर्थी को नक्त व्रत पंचमी कोअवचित व्रत अर्थात (बिना मांगे प्राप्त भोजन) पष्ठी को पूर्ण उपवास तथा सप्तमों को पारण करें। रथस्त भगवान सूर्य की भलीभाती पूजा ॐ सुवर्ण तथा रत्यादि मे अलंकृत तथा तोरण पादिसे सुसज्जित रथ में सूर्यनारायण की प्रतिमा स्थापित कर ब्राह्मण की पूजा करके दान करना। स्वर्ण के अभाव में चांदी, ताम्र आहे आदि का रथ बनाकर आचार्य को दान कर सकते है। यह माझ सप्तमी बहुत उत्तम तिथी है। पापों का हरण करनेवाली इस रथ सप्तमी को भगवान सूर्य के निमित्त किया गया स्नान, दान, होम पूजा आदि सत्कार्य हजार गुना फलदायक हो जाता है। यह कथा ब्रह्माजीने भगवान महादेव रुद्र से कही जिसे सुमन्तु मुनिने राजा शतानिक से कहा यह लेखन उसी का एक भाग है | सांवपुराणानुसार जब सूर्यनारायण उत्तरायण में आजाएं और उस दिन शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि तथा पुण्य नक्षत्र हो वह सप्तमी सर्व काम फल प्रदायिनी सप्तमी मानी गयी है। सप्तमी तिथीयों में सात सप्तमी तिथियां विशेष कर परमोत्तम मानी गयी है। जिनके नाम इस प्रकार से है। १) अर्क सम्पुटिका२) मरिया ३) निम्बपत्रा ४) फल ५) अनोदिनी ६) विजया और ७) कामिका सप्तमी ये सर्व पापों का हरण कर अभिष्ट फलदायिनी है। बारह मासों में आनेवाली प्रत्येक सप्तमी को सूर्य पूजा का विधान है। तथा उसे विविध नामों से संबोधित किया जाता है। अलावा सप्तमी कल्प में विविध सप्तमी के वृत्त विशेष एवं विशेष नाम मिलते है। इनमें भी विशिष्ट रूप से सप्त (७) सप्तमियों का विशेष महत्व (उल्लेख है। १) जो जया, विजया, जयन्ती अपराजिता, महाजवा, नंदा तथा भद्रा नाम से उल्लेखित है। जब शुक्लपक्ष की सप्तमी को रविवार आता है उसे विजया सप्तमी कहते है। जब शुक्ल सप्तमी को हस्त नक्षत्र आता है उसे जया सप्तमी कहते है। माघ मास की शुक्ल पक्ष की सप्तमी जयंती सप्तमी नाम से जानी जाती है। जो पुण्य दायिनी पाप विनाशिनी तथा कल्याण कारिणी है। भाद्रमास की शुक्ल पक्षिय सप्तमी अपराजिता सप्तमी होती है। जब शुक्ल पक्ष सप्तमी तिथी में सूर्य संक्रमण होता है। वह महाजया सप्तमी के नाम से जानी जाती है। मार्गशिर्ष शुक्ल पक्ष सप्तमी नंदा सप्तमी होती है। तथा जब शुक्ल सप्तमी को हस्ता नक्षत्र हो उसे भद्रा सप्तमी कहते है। सभी सप्तमी तिथी वृत्त को पष्ठी मे नक्रवृत रहकर सप्तमी को उपवास कर पुष्प, गंध, चंदन, कर्पूर, अगरु धूप एवं नैवेद्य अर्पण कर ब्राह्मणों को दान दक्षिणा देकर स्वयं भी वही भोजन करना चाहिये। जो भी नरनारी दत्तचित्त होकर भुवन भास्कर सूर्य नारायण का यथोचित पूजन यजन करता है, उसकी सभी कामनाएँ पूर्ण होती है। वह यहां तथा सूर्यलोक में भी सुख भोग करता है। वैसेही विशेष रूप से शाक, फल, रहस्य, सिध्दार्थ कामदा पापनाशिनी सूर्यपद दस्य सर्वाप्ति मार्तंड अनंत एवं अवयंग साथ ही विशेष रुप से विक्षुभा सप्तमीयों का भी अपना ही महत्व है । इन व्रतों को विधिविधान से करने पर भगवान सूर्यनारायण प्रसन्न हो सबकी मनोकामना पूर्ण करते है ।

भारत के पूर्वी क्षेत्र विशेष कर उत्तर बिहार, ओरिसा एवं बंगाल का कुछ भाग कार्तिक शुक्ल ६ (छठ) को सूर्याराधना का महत्वपूर्ण दिन मानते है और सूर्यास्त पूर्व सूर्यपूजन कर दिप-दान करते है तथा दूसरे दिन सुबह प्रातःकाल सूर्य को अर्घ्य दे विधिवत पूजन भजन धूप दिप नैवेद्य आदि कर सूर्यनमस्कार कए ब्राह्मण भोजन दान दक्षिणा दे । वही शुद्ध भोजन स्वयं भी करते है। सूर्य उपासना एवं व्रतों मे रविवार का भी अपना ही महत्व है। इसके भी विविध नाम एवं विधियां है परंतु प्रत्येक रविवार को स्नानादी से निवृत्त हो भगवान सूर्य नारायण को जल, पुष्प, गंध, धूप, दिपादी से अर्घ्य देकर वजन, पुजन, नैवेद्य विशेषकर नैवेद्य एवं भोजन अलुणां करना चाहीये पौष मास के रविवार व्रत का विशेष महत्व माना गया है। सूर्य आराधना को फल की महिमा अपरंपार है। सूर्य आराधना से ही देवों ने दानवों पर विजय प्राप्त की। त्रेतायुग अवतारी प्रभु रामन रावण पर विजय पायी। सूर्य के आशिर्वाद से ही श्रीकृष्ण पुत्र जांबवाती नंदन सांव कुष्ठ रोग मुक्त हुआ । युधिष्टर द्रोपदी का अक्षय पात्र सत्राजीन का स्थामंतक मणी व्यवन ऋषी की ज्योति सूर्याराधना का फल है।

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