॥ मगों की उत्पत्ति एवं मगों का भारत मे आगमन ॥

ज्ञातव्य है कि हमारी संस्कृति श्रवण संस्कृति रही है । जो बात ब्रह्माजी ने श्री सुतजी से कही वही बात श्री सुतजीने सनकादिक ऋषियों से कही। या श्री व्यासजी ने शौनक ऋषी से कही. अर्थात गुरु शिष्य परंपराने ब्रह्मांड ज्ञान को विविध कथाओं के आधार पर सर्वश्रुत करने का अमोल प्रयास किया है । यही श्रुतियां वेद पुराण महाकाव्य स्मृति तथा ब्राह्मण ग्रंथो के रुप में प्रस्तुत हुआ । उपरोक्त ग्रंथ इस ब्रह्मांड के सभी अनबुझ ज्ञान को उजागर करते है । अर्थात भू भुव स्व: ब्रह्मांड पंचमहाभुत, महाद्वीप, महासागर, ब्रह्मा (प्रजापति) विष्णु, शिव, देव दानव आदित्य मनु ब्राह्मण आदी वर्ण इन सभी के उत्पत्ती आदि विषयो का ज्ञान भी इन्ही में समाहित है ।

मगों की उत्पत्ति के विषय मे जानने से पहले मग शब्द को परिभाषित करना उचित होगा । वेद पुराणों के अनुसार ॐ ओंकार स्वरुप भुवन भास्कर भगवान सूर्यनारायण के मकार स्वरुप की विधीवत उपासना पूजा-अर्चा एवं आराधना करने वाले ‘मग’ कहलाते है।

मगों की उत्पत्ती के बारे में महामति वैनतेय अरुण को स्वयं भगवान भास्कर आदित्य ने कहा और उसी कथा को ऋषी जनों ने कहा । श्री भास्कर भगवान ने कहा ये मग जन मुझे अतिप्रिय है, वर्ण से ये ब्राह्मण है तथा मेरी पूजा अर्चा हेतु ही मैने इनका सृजन किया है। । तथा ये ही मेरे आत्म स्वरुप भी है। मंत्रों के अन्य लक्षण जो स्वयं भगवान सूर्यनारायण ने वैनतेय अरुण से कहा और जिसे श्रीकृष्ण ने अपने पुत्र जांबवती नंदन सांब से कहा । संक्षेप में इस प्रकार से है । उत्तम लक्षणों से युक्त केवल भगवान सूर्य नारायणमें ही आस्था रखता हो। सिर पर शिखाधारी मुंडित सर वाला नित्य अव्यंग धारण करनेवाला, नितरोज प्रभु समक्ष शंख ध्वनि करने वाला । (भगवान सूर्यनारायण को शंख ध्वनि अतिप्रिय है) वेदाध्यन के पश्चात ही गृहस्थाश्रम में प्रवेश करनेवाला । करवीरपुष्प एवं रक्तचंदन सहित नित्य अर्घ्य, धूप माला जप एवं उपहार से प्रभु का यजन करनेवाला । नित्य त्रिकाल स्नान कर संध्या सहित दिन रात्री मे पंचकृत्य – (ईज्या, अभिगमन, उपादान, स्वाध्याय और योग) अर्थात प्रतिमापूजन, संध्या तर्पण हवनपूजन, ध्यान, जप एवं सूर्यचरित्र पठनकरने वाला । देवी देवताओं की निंदा न करनेवाला अपितु देव ऋषि पितर अतिथी एवं भूत यज्ञ आदि पांचो अनुष्ठान करनेवाला । त्रिसंध्या सहित गायत्रीमंत्र का जाप करनेवाला ।

भगवान सूर्यनारायण को नैवेद्य दिखाकर ही, अभोज्य का त्याग कर सदैव एव भुक्त सात्विक भोजन करनेवाला। रविवार को तथा षष्ठी को नक्तव्रत कर सप्तमी को उपवास करनेवाला तथा अलवण भोजन करनेवाला । क्रोध, अमंगल- त्यागकर आस्था सहित प्रभु भुवनभास्कर में ही प्रिति रखनेवाला भोजक -वचन तथा अशुभ कर्मो का

(मग) भगवान सूर्यनारायण को अतिव प्रिय है। ऐसेही मगों की उत्पत्ति भगवान सूर्यनारायण के तेजांश से हुआ है और पुराणों, ब्राह्मण ग्रंथों, स्मृति और सुक्तोंमें मर्गोको सर्वश्रेष्ठ ब्राह्मण के रूप में बताया गया है। ‘मग ब्राह्मण भूयिष्ठाः ” का प्रयोग लगभग सभी पुराणों में मिलता है।

कथासार : भविष्य पुराणानुसार शाकद्वीप के महाराज, प्रियवत के ने पुत्र अधिराजा मेघातिथी द्वारा निर्मित शाकद्वीप स्थित प्रथम सूर्यमंदिर 1 एवं सुवर्ण सूर्यप्रतिमा-प्राणप्रतिष्ठा एवं पूजा अर्चा हेतु धर्मात्मा महाराज ● प्रियव्रत की प्रार्थना से प्रसन्न होकर कार्य संपन्नता हेतु भगवान सूर्य नारायण मे अपने तेज से अष्ट मग संजक बलशाली तेजस्वी ब्राह्मण ■ पुत्रों का सृजन किया। इनमेसे २ पुत्र ललाट से २ वक्षःस्थल (वाजुसे) ● २ कटी वा चरण से तथा २ पाद से उत्पन्न हुये । ये पितांबर धारी ■ तेजस्वी पुत्र जन्मत: ही भुवन भास्कर भगवान सूर्य नारायण के ‘म’ कार स्वरुप का स्तवन करने लगे। यही सूर्य पुत्र मग ब्राह्मण सूर्य पुजा अर्चा के अधिकारी हुआ । तथा राजा द्वारा निर्मित सूर्य मंदिर सूर्य प्रतिमा प्राणप्रतिष्ठा एवं पूजा अर्चाकर राजा एवं प्रजाजनों को संतुष्ट किया। ये मंदिर निर्माण विधी एवं प्रतिमा-मान आदि के भी विशिष्ट जानकार थे। ज्योतिष्यी एवं आयुर्वेदीक ज्ञान के साथ ही इन्हे वाच्चा सिद्धी भी प्राप्त थी।

अर्थात भुवन भास्कर भगवान सूर्य नारायण ने अपने पुजा- अर्चा, उपासना तथा प्रचार प्रसार हेतु ही मग संज्ञक ब्राह्मणों का सृजन किया। प्रभु द्वारा सृजित होने से “दिव्य” कहे जाते हैं

एक ऐसी भी कथा आती है की प्राचिन कालमें शाकद्वीप के राजा प्रातदिन, सदेह सूर्यलोक जाने हेतु सौर यज्ञ का आयोजन किया । परंतु सुयोग्य यज्ञकर्मी के अभाव में यज्ञकार्य संपन्नता के लिए योग्य यश कर्मी की आवश्यकता, हेतु प्रार्थना से प्रसन्न होकर भगवान भास्कर ने अपनी प्रभामंडल से सप्त तेजस्वी वेद वेदांग पारंगत मानस पुत्रों को प्रकट किया। यज्ञ कार्योपरांत प्रभु पुत्रों ने वंश वृद्धी हेतु मानस संमान उप्तन्न कर सौर संप्रदाय विस्तार कर्म तथा प्रभु कार्य मे लीन हुआ ।

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