॥ पंचदेव पूजा विधान ॥

पांचो देवो में आप अपने इष्ट देव को केन्द्र अर्थात मध्य में विराजमान कर अन्यचारों देवताओं को चार कोणों में अर्थात अमेय, नैऋत्य, वायव्य तथा ईशान्य दिशा में स्थापित कर विधियुक्त पुजन कर सकते है । सौर संप्रदायी अपने इष्ट प्रभु सूर्यनारायण की मूर्ति या प्रतिमा केन्द्र में रख कर –

अग्नेय दिशा में श्री गणेशजी को स्थापित करे। नैऋत्याय दिशा में श्री हरि विष्णु भगवान को वायव्य दिशा में : श्री शक्ति अंबिका को तथा ईशान्य कोण में : श्री शंकर महादेव को प्रस्थापित कर ईष्ट देवता सह सभी देवताओं का मंत्रोच्चार द्वारा विधिविधान से एकाग्र चित हो

पूजन करना चाहिए ।

भगवान सूर्य नारायण को अष्टाक्षर महामंत्र का जाप कर पूजा करना ।

॥ ॐ घृणी सूर्य आदित्योमः ॥

अग्येय कोणस्थित भगवान श्री गणेश महामंत्र का जाप कर पूजा करना ।

वक्रतुंड महाकाय सूर्यकोटी समप्रभः । निर्विघ्नम् कुरुमे देव सर्व कार्येषु सर्वदा ॥

नैऋत्य कोण में विराजित भगवान श्री हरि विष्णु के मंगल स्तोत्र का जाप करना ।

मंगलम् भगवान विष्णु मंगलम् गरुड ध्वजः ।

मंगलम् पुंडरिकांक्षो, मंगलाय तनो हरि ॥

वायव्य कोणस्थित श्री शक्ति-जगदंबा-अंबिका के मंगल मंत्र का जाप कर स्तुती करे । सर्व मंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके ।

शरण्ये त्रिंबके गौरी, नारायणी नमोस्तुते ॥

ईशान्य कोण के ईश महादेव शंकर भगवान का मंत्र उच्चार कर नमन करे ।

कर्पूर गौरम् करुणावतारम् संसार सारम भुजगेन्द्र हारम

सदावसंतम् हृदयार बिन्दे भवम भवानी सहितम नमामी |

इस तरह हम हमारे इष्ट देव सहित पंचदेवों की विधियुक्त पूजा कर सकते है। उपरोक्त मंत्रो के अलावा हम अन्य संबंधित मंत्रों मर भी यही पूजा कर सकते है । यह एक सरल पूजाविधि है। विधान का संक्षिप्तीकरण है ।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *