आपकी आंतरिक सुझबुझ, निर्धारित कार्यशैली आर्थिक नियोजन तथा सुस्पष्ट धारणा एवं निःस्वार्थ भाव ने सभा के सर्वोच्च पद की गरिमा को बनाये रखते हुये सर्वसाधारण कार्यकर्ता के रुप में सहयोगीयों सह “आजिवन सदस्यता अभियान” को मूर्त स्वरुप दिया। आज यह सभा ४५० या सेभी अधिक सदस्यों की अपनी संस्था हो गयी है ।
उपलब्धी की बात करे तो – १९६५ वाम्बोरी जन सभा जिसे १९६६ मालेगांव में संवैधानिक संघटना (म.रा.शा.ब्रा.सभा) का स्वरुप प्राप्त हुआ को आजिवन
सदस्यता अभियान के माध्यम से स्थायित्व एवं लोककल्याणकारी संस्था का सुस्वरुप देना हरेकृष्णजी की महत्वपूर्ण ही नहीं अविस्मरणिय उपलब्धी है । जिसका श्रेय निश्चित रुप से हरेकृष्णजी शर्मा अर्थात बाळासाहब को जाता है । यह आपके द्वारा प्रदत्त अन्य उपलब्धीयों में एक महत्वपूर्ण ही नही संस्मणिय उपलब्धी है जिसे महाराष्ट्र राज्य शा.ब्रा. सभा के इतिहास में सदा अविस्मणिय स्थान प्राप्त रहेगा ।
दुसरी महत्वपूर्व उपलब्धी आपके सुझबुझ एवं आर्थिक नियोजन ने यद्यपी परिपूर्ण नही, परंतु समाधानकारक कोष (अर्थ) की निर्मिती की है ।
पदासीन होना एक बात है और पदासीन रहते हुओ लोक कल्याण हेतु पद की गरिमा तथा संस्था के हित की जोपासना करते हुये संस्था के अभ्युदय एवं उन्नयन के लिये कर्तव्य भाव से तत्पर रहना कठीन ही नही कठिनतम हो जाता है, जिसका आपने सफल प्रयास किया है ।
“आपही के नेतृत्व में धूलिया अधिवेशन में समाज मनीषी, निधीदाता, प्रथम मानांकित तथा विविध ससंस्थाओं द्वारा सत्कारार्थी जनों का स्वागत सत्कार किया गया । विविध कार्यक्रम निधी अंतर्गत प्रदत्त निधी दाताओं का भी साभार सत्कार मानचिन्ह प्रदान कर मुंबई सर्वसाधारण सभा में किया गया । यह भी आपके सहयोगी जनों से परामर्श कर कार्यान्वित करते हुने विविध स्तरिय सभी उपक्रम समाज जनों को सभा से मानसिक रुप से जोडनेका सफल प्रयास किया । इन सारे उपक्रमों का ब्योरा के साथ ही सामाजिक संदेश माग जनों तक पहुंचे इसलिये आपका मनस्वी प्रयास है – स्मरणिका २००५
इन सारे उपक्रमों करते हुये आप अनेक विध अर्थात सामाजिक, संघटनात्मक, पारिवारिक एवं व्यक्तिगत शारिरीक एवं मानसिक कठिनाइयों का सहते हुओ अपना पदातीक्रमण जारी रखा है ।