प्रथम सभापती
जैसे देवदार के वृक्ष जंगलों में अपने आप बढते है । वैसे ही श्री. शांतीलालजी मिसर ने स्व कृतत्व एवं कठिण परिश्रम से आर्थिक राजधानी के शहर मुंबई की राह ली और स्नातक बी. कॉम. एल.एलबी. की उपाधी (डिग्री) प्राप्त कर अपने लक्ष्य को सी.ए. (चार्टर्ड एकाउंटेन्ट) की ओर किया और ये सारा अध्ययन क्रम लर्निंग बाय अर्निंग सिध्दांतानुरुप ट्युशन इत्यादी से आजिविका का भार वहन कर चार्टर्ड एकाउंटन्ट की उपाधी से विभुषित हुआ ।
सुविद्य श्री. शांतीलालजी शाकद्वीपी ब्राह्मण समाज के प्रथम चार्टर्ड एकाऊंटन्ट हुअ । समाज को इसका सार्थ गौरव है ।
यद्यपी आपका अध्ययन काल अत्यंत कष्ट साहा एवं अभाव ग्रस्त रहा तथापी ज्ञान संपदा से सम्पन्न होकर नौकरी को अस्विकार कर स्वतंत्र व्यवसाय को अपना आधार बनाया । मुंबई जैसे महानगर में अपने आपको स्थापित करना इतना आसान नही था । परंतु अथक परिश्रम, लक्ष्यवेधी लगन तथा कडे अनुशासन ने इस महापुरुष को शुन्य से बुलंदी तक पहुंचा कर मुंबई शहर के चार्टर्ड एकाऊंटन्ट की लंबी कतार में अग्रणी कर मील का पत्थर साबीत कर दिया ।