वाम्बोरी गांव नगर जिले का एक छोटासा कस्बा है। परंतु राजस्थानी समाज की बहुलता के कारण पहलेसे ही व्यापरी मंडी के रूप में जाना जाता है, प्रसिध्द है । तथा यहां सभी राजस्थानी समाज बांधवों में सामंजस्य एवं प्रेमभाव दिखाई देता है।
कभी यहां समाज बान्धवों की बस्ती अच्छी संख्या में रही होगी । क्योंकि यही स्थान उस वक्त आज के (पश्चीम महाराष्ट्र) नगर- पुणे विभाग का केन्द्र स्थान था । इस परिसर से संबंधीत समाज बांधव यहाँ से अपना आना जाना करते रहते थे । परंतु आज की स्थिति में केबल (१२) बारह समाज कुटूंबों का वास है । और विशेषकर सभी समाज बान्धव किसी न किसी व्यापार वा नौकरी से अपना प्रपंच चलाते है । हमारे समाज के चार मुख्य केन्द्र स्थानों (बगिचियोंमें) मै बाम्बोरी भी एक महत्वपूर्ण केन्द्र के रुप में जाना जाता है।
करिब चारसौ से पाचसौ वर्ष पहले जब अपने पूर्वज राजस्थान से यहां (वाम्बोरी) आये तब वे बाबा भैरवनाथ की मूर्ती कुचेरा जि. नागोर राजस्थान में अपने साथ ही लाये थे एवं उन्होने ही उसकी प्राण-प्रतिष्ठा भी की । शुरवाती दौर में मूर्ती बहुत छोटी थी । परंतु आज बाबा भैरवनाथ की मूर्ती विशाल हो गयी है । इसकी महापूजा ‘में करिब सव्वा किलो सिन्दुर सुगंधी तेल में मिलाकर लगाया जाता है । ऐसी जानकारी बाम्बोरी के लल्लड गोत्रिय स्व. भिकचंदजी शर्मा के सुपुत्र श्री. राजेन्द्रकुमारजी (राजुसेठ) तथा उनके पौत्र सतिषजी गोविंदलालजी शर्मा ने
दी ।