॥ सप्तमी तिथी एवं रविवार व्रत सूर्यपुजा विधी |

भुवन भास्कर भगवान सूर्यनारायण को सप्तमी तिथी अतिव प्रिय है। यूं तो सूर्यउपासकों के लिये प्रतिमास के शुक्लपक्ष की सप्तमी तिथि परम पुनीत, पर्व का दिन है। परंतु माघ शुक्ल सप्तमी का अपना ही महत्व है । सौरजनों का यह पूण्यप्रद उत्सव है, महापर्व है। जो रथसप्तमी, अचला सप्तमी, विजयासप्तमी आदि नामों से जानी जाती है। सूर्योपासकों को चाहिए कि वे प्रतिमास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी को नियम पूर्वक वृत्त पूजा के साथ ही भगवत् कथा (भगवान सूर्य के परिवार एवं सांबपर कृपा) का श्रवण करे । अर्थात पढे और सुने । वैसे तो वृत्त रखनेवाले महिला-पुरुष संकल्प पूर्वक पंचमी को सायंकाल भोजन न करे। पट्टी तिथि को पूर्ण व्रत रखे । सप्तमी को सूर्य भगवान का पूजन विधि पूर्वक करके सूर्यकथा को पढे या सुने पश्चात ब्राह्मण भोजन या अतिथी पूजन के पश्चात वृत्त का उद्यापन करना चाहिए। ऐसा विधान है। पूजा में विविध पुष्पों से पूजा करने का विधान बताया गया है। अर्थात ऐश्वर्याकांक्षी श्वेत कमलसे भोगों की ईच्छा रखनेवाला मोगरा मल्लिका पुष्प से परम ऐश्वर्य की चाहत रखनेवाला गंध कुटज से कुष्ट नाश चाहनेवाला, मंदार पुष्प से (आक) के फूलोंसे स्वर्ण- अनुचर की चाहत रखनेवाले को करवीर पुष्प से भगवान सूर्यनारायण की पूजा करने का विधान है। इसी अंतर्गत रुई के पुष्पों की माला अर्पण करनेवालेकी इच्छा शिघ्र ही पूर्ण होती है अर्थात उसकी सभी कामनाएं पूर्ण होती है। करवीर पुष्प एवं रक्त चंदन से पूजन करनेवाला सब तरह से सुखी एवं सफल होता है। पूजन के लिए यदि मूर्ति न हो तो भोजपत्र वा ताम्रपत्र पर रक्तचंदन से चित्र बनाकर षोडशोपचार, दशोपचार अथवा पंचोपचार से पूजन कर लेना चाहिए। ये सब भी उपलब्ध न हो तो चित्र प्रतिमा से भी काम लिया जा सकता है। भगवान आशुतोष विश्वंभर भुवन भास्कर तो सच्चे मन से केवल नामस्मरण से भी प्रसन्न हो जाते है।

पूजा के समय १०८ बार भगवान सूर्य के नमः पूर्वक (सूर्याय नमः) पुष्प अर्पण करना चाहिए। भगवान भुवन भास्कर के प्रति सप्तमी व्रत अथवा रविवार वृत्त विधिपूर्वक रखता हो वह सर्व फलों को प्राप्त कर सूर्य लोक को प्रपात करता है। प्रतिदिन, रविवार अथवा सप्तमी तिथी विशेष रूपमें माघ सप्तमी अथवा अन्य सप्तमी तिथी को भगवान भुवन भास्कर (सूर्यनारायण) पूजन का विधान इस प्रकार है। पूजन विधान भगवान भुवन भास्कर के द्वादश मंडल चक्र को पान के पत्तेपर अथवा ताम्रपात्र पर रक्तचंदन से आकृतीबद्ध कर पूजन करते का विधान बताया गया है। पूजनका मंत्र :-

ॐ नमो भगवते संज्ञा सहिताय भास्कराय नमः ॥

सूर्यमंडल

भगवान सूर्य के पूजन में ताम्रपात्र, रक्तचंदन, रक्तवस्त्र, रक्तपुष्प एवं विनानमक के प्रसाद का व्यवहार करने का विधान है तथा

ॐ नमो भगवते संज्ञासहिताय भास्कराय नमः ।

इसी मंत्र से समस्त पूजा करना चाहिए। ध्यान :-

ध्येयः सदा सवितृ मण्डलमध्यवर्ती नारायण सरसिजासन सन्निविष्टः । केयुर मकरकुण्डलवान् किरीटी, हारी हिरण्मय वषुर्वत शंखचक्रः ॥

इस प्रकार ध्यान करके ॐ नमो भगवते संज्ञा सहिताय भास्कराय नमः इस मंत्र से पाद्य, अध्यं, आयमनीय स्नान, वस्त्र, यज्ञोपवित पुन: आयमनीय चंदन पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य, ताम्बुल, दक्षिणा, फल आरती, पुष्पांजली आदि अर्पण करने के पश्चत निचे लिखित स्तुति नमस्कार कर प्रदक्षिणा करे। ऐसा विधान है। स्तुति :-

से आवडलाठधमौलीः स्फुरदधरखचा रञ्जितचारुकेशो, भास्वान यो दिव्य तेजाः करमकरयुतः स्वर्णवर्णः प्रभाभिः ॥ विश्वाकाशावकाशे गृहपति शिखरे माति यश्वो दया द्यो । सबनिन्द प्रदाता हरिहर नमितः पातु मां विश्वचक्षुः ।।

ऐसा विधानानुसार विधीपूर्वक पूजन मंत्र ध्यान स्तुति मनःपूर्वक करता है। प्रभु के धाम को प्राप्त कर अनेक सुखों का उपभोग कर राजस्वी जन्म को प्राप्त करता है। उसके सारे मनोरथ पूर्ण होते है ।

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